Deepawali 13 totke for money

तिजोरी यानी धन की पेटी अधिकांश घरों में होती है। यह ऐसी जगह होती है जहां हम अपनी कीमती सामग्री और धन-पैसा रखते हैं। यह तिजोरी कभी खाली नहीं रखना चाहिए। यहां धन की आवक बनी रहे इसलिए कुछ टोटके  हैं जिनको अपनाकर आप अपनी तिजोरी या धन की पेटी को हमेशा भरे हुए पायेंगे। आप इन उपायों को दीपावली के दिन करें। धन विशेष रूप से लाभ मिलता रहेगा।

 

 

पहला टोटका :

पूजा की सुपारी : पूजा की सुपारी पूर्ण एवं अखंडित होती है। इसीलिए इसको पूजा के समय गौरी-गणेश का रूप मानकर उस पर जनेऊ चढ़ाई जाती है। बाद में उस पूजा की सुपारी को तिजोरी में रखना चाहिए क्योंकि जहां गणेशजी यानी बुद्धि के स्वामी का निवास होता है वहीं लक्ष्मी का निवास होता है। इससे घर में लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है।

 

लक्ष्मी पूजन में सुपारी रखें। सुपारी पर लाल धागा लपेटकर अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि पूजन सामग्री से पूजा करें और पूजन के बाद इस सुपारी को तिजोरी में रखें।

 

दूसरा टोटका :

तिजोरी में रखें ये वस्तुएं : शुक्रवार को पीले कपड़े में 5 कौड़ी और थोड़ी-सी केसर, चांदी के सिक्के के साथ बांधकर तिजोरी या धन रखने के स्थान पर रख दें। उसके साथ थोड़ी हल्दी की गांठें भी रख दें। कुछ दिनों में ही इसका असर होने लगेगा।

 

तीसरा टोटका :

रहेगी सदा बरकत इस उपाय से : तिजोरी में 10-10 के नोट की एक गड्डी रखें और कुछ पीतल और तांबें के सिक्के भी रखे। पीले सिक्के होंगे तो वह भी चल जाएंगे। कुछ सिक्के आपकी जेब में भी रखें। ध्यान रखें कि सिक्के जर्मन या एल्युमिनियम वाले न हों।

 

चौथा टोटका :

पीपल का पत्ता : एक पीपल का पत्ता लें और उस पर देशी घी में मिश्रित लाल सिंदूर से उसे पर ॐ लिख कर इसे तिजोरी या धन रखने वाले स्थान पर रख दें। ऐसा कम से कम पांच शनिवार करेंगे तो पांच पत्ते हो जाएंगे। इससे धन संबंधी तंगी दूर हो जाएगी।

 

पांचवां टोटका :

पीली कौड़ी : पुष्य नक्षत्र के दिन शाम के समय लक्ष्मी पूजन करें। पूजन में पुराने चांदी के सिक्के और रुपयों के साथ कौड़ी रखकर उनका केसर और हल्दी से पूजन करें। पूजा के बाद इन्हें तिजोरी में रख दें। आपकी तिजोरी हमेशा पैसों से भरी रहेगी।

 

छठा टोटका :

दक्षिणावर्ती शंख रखें- तंत्र-मंत्र में दक्षिणावर्ती शंख का विशेष महत्व है। इसे घर के पूजा स्थान या तिजोरी में रखने से माता लक्ष्मी स्वत: ही इसकी ओर आकर्षित होती है और रंक को भी राजा बना देती है। सोम-पुष्य योग में इसे घर में रखने से सुख-समृद्धि बनी रहेगी।

सातवां टोटका :

भोजपत्र : अखंडित भोजपत्र पर लाल चंदन को पानी में घोल लें और उसको इंक जैसा इस्तेमाल करते हुए मोर पंख से ‘श्रीं’ लिखें। अब उस भोजपत्र को तिजोरी में रख दें। कुछ ही दिनों में फायदा शुरु हो जाएगा। पैसा बढ़ता चला जाएगा।
आठवां टोटका :

बहेड़ा की जड़ : बहेड़ा सहज सुलभ फल है। इसका पेड़ बहुत बड़ा, महुआ के पेड़ जैसा होता है। रवि-पुष्य के दिन इसकी जड़ या पत्ते लाकर उनकी पूजा करें, तत्पश्चात् इन्हें लाल वस्त्र में बांधकर भंडारगृह या तिजोरी में रख दें। यह उपाय आपकी समृद्धि बढ़ाएगा।

 

नौवां टोटका :

शंखपुष्पी की जड़ : पुष्य-नक्षत्र के दिन शंखपुष्पी की जड़ लाकर, इसे देव-प्रतिमाओं की भांति पूजें और इसके पश्चात्य चांदी की डिब्बी में प्रतिष्ठित करके, उस डिब्बी को धन की पेटी, तिजोरी, भण्डारघर अथवा बक्से में रख दें। यह टोटका लक्ष्मीजी की कृपा कराने में अत्यन्त समर्थ है। हर गुरु-पुष्य के दिन शंखपुष्पी की जड़ व चांदी की डिब्बी बदल दें। पहले वाली बहते पानी में प्रवाह कर दें।

 

दसवां टोटका :

यंत्र स्थापना : ऐश्वर्य वृद्धि यंत्र या धनदा यंत्र की स्थापना करें। दोनों में से से किसी भी एक यंत्र को विधिवत रूप से पूजन करके उसे धन रखने के स्थान पर या तिजोरी में रख दें। इससे आपकी तिजोरी कभी भी खाली नहीं रहेगी और धन बढ़ता ही जाएगा।

 

ग्यारहवां टोटका :

काली गुंजा : धन-संपदा के लिए तिजोरी के नीचे या तिजोरी के अंदर काली गुंजा के ग्यारह दाने पवित्र करके रखें। धन रखने के स्थान पर या तिजोरी में हमेशा लाल वस्त्र बिछाएं। दूकान में तिजोरी के पास लक्ष्मी गणेश की तस्वीर लगाएं।

 

बारहवां टोटका :

व्यापार में लाभ हेतु : होली के दिन गुलाल के एक खुले पैकेट में एक मोती शंख और चांदी का एक सिक्का रखकर उसे नए लाल कपडे में लाल मौली से बांधकर तिजोरी में रखें, व्यवसाय में लाभ होगा।

 

इसके अलावा व्यवसाय में मनोनुकूल लाभ की प्राप्ति नहीं हो रही हो तो किसी भी शनिवार के दिन नीले कपड़े में 21 दाने रक्त गुंजा के बांधकर तिजोरी में रख दें। अपने इष्टदेव का ध्यान करते हुए हर रोज धूप, दीप अवश्य दिखाएं। ऐसा नियमित करने से व्यापार में लाभ मिलेगा और सफलता भी प्राप्त होगी।

 

तेरहवां टोटका :

श्रीफल : किसी शुभ मुहूर्त में श्रीलक्ष्मी फल को लाल कपड़े में रखकर उस पर कामिया सिन्दूर, देशी कपूर तथा साबुत लौंग चढ़ाकर धूप-दीप देकर एवं कुछ दक्षिणा अर्पित करके अपने गल्ले या तिजोरी में रखें। इससे धन में वृद्धि होती चली जाएगी। यदि एक नारियल चमकदार लाल कपड़े में लपेटकर धन रखने के स्थान पर रखा जाए तो शीघ्र ही धन का आगमन होगा।

Shree Laxmi Kamla Prayog on Deepawali 2019


यह श्री कमला प्रयोग सारे दु:खो को हर लेता है ,घर की सभी प्रकार की अशुभता दूर कर देता है , दरिद्र्यता दूर कर के घर में शुभ लक्ष्मी की प्राप्ति होकर सभी प्रकार का सुख प्राप्त होता है | इसका 16 बार 108 दिन तक पाठ करनेसे अति शीघ्र फल प्राप्त होता है | फ़लश्रुती केवल अन्तः मे एक बार पढे |

!! श्री कमला प्रयोगः !!

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्त्रजाम | चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जात वेदो म आवह ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

तां म आव ह जातवेदो लक्ष्मी मनप गामिनीम् | यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषा नहम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||२||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् | श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीजुषताम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||३||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् | पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||४ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् | तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्दे अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||५||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तववृक्षोथ बिल्वः | तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||६||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह | प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||७||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठां अलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् | अभूतिमसमृद्धिं च सर्वांनिर्णुद मे गृहात् ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||८||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् | ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||९||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि | पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः ||१०||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

कर्दमेनप्रजाभूता मयिसम्भवकर्दम | श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||११||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे | नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१२ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् | चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१३ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् | सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१४ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् | यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१५||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् | सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१६||

|| फलश्रुती ||

पद्मानने पद्म-ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे | तन्मेभजसि पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ||१७||

अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने | धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ||१८||

पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि | विश्वप्रिये विष्णु्मनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधत्स्व ||१९||

पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् | प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ||२०||

धनमग्निर्धनं वायु:, धनं सूर्यो धनं वसुः | धनमिन्द्रो बृहस्पति: वरुणं धनमस्तु ते ||२१||

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा | सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ||२२||

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः | भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत् ||२३||

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक-गन्ध-माल्य-शोभे | भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ||२४||

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् | लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ||२५||

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि | तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ||२६||

श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते | धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ||२७||

आनन्द: कर्दम: श्रीद: चिक्लीत इति विश्रुताः | ऋषयः श्रिय पुत्राश्च मयि श्रीर्देवि-देवता ||२८||

ऋण रोगादि दारिद्र्यं पापं क्षुद् अपमृत्यवः | भय शोक मनस्तापाः नश्यन्तु मम सर्वदा ||२९||

ॐ शान्ति: शान्तिः शान्तिः ॐ

शाबर मन्त्र भाग 20 अद्भुत शाबर मन्त्र संग्रह | Shabar Mantra eBook Part 20 Anubhut Shabar Mantra


शाबर मन्त्र भाग 20 अद्भुत शाबर मन्त्र संग्रह 



|| श्री गुरुवे नम: || 



ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वर: 


गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:|| 

गुरुदेव ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव है | गुरुदेव ही साक्षात् परब्रह्म है | 
अतः ऐसे गुरुदेव को मैं नमस्कार करके शाबर मंत्र के विषय में लिख रहा हूँ | मन्त्र तन्त्र शास्त्र का विषय बहुत ही कठिन व जटिल है | 
शाबर मंत्र की विद्याये कई प्रकार की कही गयी है | कई तांत्रिक लोग ६४ (64) योगिनी को लेकर चलते है, कई ३ योगिनी को और कई ६८ (68) योगिनी को, तो कई ८४ (84) योगिनी को लेकर चलते है | शाबर मन्त्रो के अलग अलग फड़ होते है जैसे- औघड़, उल्तनी, पलटनी, बैह्या, मरघट वीर, मरही माता, दुल्ल्हादेव, बाघ देव, खैर माता, भिल्ट बाबा, भैसासुर, महिसासुर, काल्हा बाबा, कावड़ खण्ड की मैली, देसावरी, मराहि माता आदि ||

शाबर मंत्र अत्यंत ही अटपटे शब्दों की रचना होती है | जिसके बार बार आवृति से यह अत्यंत ही तीक्ष्ण प्रभावशाली बनकर तनाव चिंता से मुक्ति दिलाते ही है | साथ में मानवी इच्छा को पूर्ण करते है | इन मंत्रो के मूलभूत स्रष्टा गुरु गोरखनाथ जी है | जिन्होंने इन मंत्रो की रचना कर अध्यात्म के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया था | वस्तुतः वैदिक मन्त्र कीलित होते है जिनको की जनसाधारण द्वारा सिद्ध करना बहुत ही मुस्किल कार्य है | तथा इनको बिना गुरु के ना ही समझा जा सकता है और ना ही इन्हें सिद्ध करने का अधिकारी हो सकता है | मन्त्र उच्चारण भी बहुत कठिन होते है जिनको की बिना व्याकरण ज्ञान के ठीक ढंग से उच्चारित नहीं किया जा सकता है | तब जाकर शिव जी, गुरु गोरखनाथ, नाथ पंथी, सिद्ध साधको आदि ने लोक कल्याण के लिए इन शाबर मंत्रो का निर्माण किया जिनका कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म, जाति, उम्र, स्त्री, पुरुष कोई भी इनका प्रयोग बड़ी ही आसानी से खुद ही कर सकता है | शाबर मंत्रो की सिद्धी के लिए वैदिक तांत्रिक मन्त्रो जैसे कड़े एंव समस्या पूर्ण विधान नहीं होते है | इनके साथ समय, स्थान, पात्र, सामग्री, जप संख्या, हवन आदि की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती | कहीं भी, कभी भी, किसी भी स्थिति में कोई भी इन शाबर मंत्रो का प्रयोग कर सकता है |


वैदिक मन्त्र शास्त्र में तो अगणित मन्त्र-तन्त्र है | इसी प्रकार अन्य धर्म – मुस्लिम, जैन, बुद्ध आदि में भी ये कम नही है | ये मन्त्र तन्त्र प्राय: लुप्त होते जा रहे है | कारण की हमारे पूर्वज अपने तन्त्र मन्त्र ज्ञान को अपने साथ ही ले कर चले गये | अब जो कुछ बी बचा है वो बुल्कुल ना के बराबर है | बहुत से लोग ये समझते है कि पुस्तक का पाठ कर लिया, अब हम सिद्ध साधक / भगत / तांत्रिक बन गये | इन प्रकार की आशा करना बेकार है |

आज तक आपने कई तन्त्र मन्त्र की पुस्तकें देखि और पढ़ी होगी , लेकिन जेसा की मैं आपको EBOOK मैं मत्रों का संग्रह दे रहा हूँ वेसी आपने ना तो देखि होगी और ना ही सुनी होगी | ऐसे ऐसे मन्त्र तन्त्र प्रयोग इन पुस्तकों में दियें गये है जोकि कई हजारों रुपये खर्च करने पर भी सिद्ध महापुरुष लोग किसी को नही बताते | ये मन्त्र ऐसे है जोकि छोटी से छोटी साधना की पूर्ति करने व जप करने से ही मन्त्र के वीर / सिद्ध आत्मा अपना प्रभाव तुरंत ही दिखाने लगते है |


आज तक आपने कई तन्त्र मन्त्र की पुस्तकें देखि और पढ़ी होगी, लेकिन जेसा की मैं आपको EBOOK मैं मत्रों का संग्रह दे रहा हूँ वेसी आपने ना तो देखि होगी और ना ही सुनी होगी | ऐसे ऐसे मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र प्रयोग इस पुस्तक में दियें गये है जोकि कई हजारों रुपये खर्च करने पर भी सिद्ध महापुरुष / भगत लोग किसी को नही बताते | ये मन्त्र ऐसे है जोकि छोटी से छोटी साधना की पूर्ति करने व जप करने से ही मन्त्र के वीर / सिद्ध आत्मा अपना प्रभाव तुरंत ही दिखाने लगते है |


इन मंत्रों के सभी मंत्र, यंत्र, यंत्र, कार्यवाही और उनके तरीकों को आज के चरम समय को देखकर हाइलाइट किया गया है, ताकि आम लोग जो भी कोई अन्य काम करते है वे भगत लोग , इस ग्रामीण शक्ति का लाभ उठा सकते हैं। आपने आज तक कई किताबें पढ़ी हैं, जिसमें इस तरह के तरीकों का विवरण, जप और पूजा सामग्री , समय अवधि, दी जाती है कि आप केवल पढ़ने के बाद ही टूट जाते हैं और उन पुस्तकों में लिखी सभी बातो का पालन करना एक आम आदमी के लिए सम्भव भी नही होता , लेकिन इन पुस्तकों में सभी विधियां सरल हैं |


इस भाग “शाबर मन्त्र भाग 20 अद्भुत शाबर मन्त्र” में आपको अनेक प्रकार के प्राचीन प्रमाणिक अद्भुत शक्तिशाली शाबर मंत्रो, व् तंत्रों सम्बन्धी रहस्यों, बारीकियो का ज्ञान होगा और शाबर मन्त्रो की सिद्धि, प्रयोग, जप नियम, सीमायें आदि की पूर्ण जानकारी प्राप्त होगी | और अगर आप एक शाबर मन्त्र साधक है या आपका ऐसा ही विचार है कि शाबर मन्त्र साधना करने का तो यह पुस्तक आपके लिए बहुत ही अनिवार्य है जिसका की अध्ययन आपको जरुर ही करना चाहिए | व् अपने शाबर मन्त्र साधक जीवन को अग्रसर करना चाहिए |

इस ईबुक के सभी मंत्र, यंत्र, यंत्र, कार्यवाही और उनके तरीकों को आज के चरम समय को देखकर हाइलाइट किया गया है, ताकि आम लोग जो भी कोई अन्य काम करते है वे भगत लोग, इस ग्रामीण ज्ञान का लाभ उठा सकते हैं। आपने आज तक कई किताबें पढ़ी हैं, जिसमें इस तरह के तरीकों का विवरण, जप और पूजा सामग्री , समय अवधि, दी जाती है कि आप केवल पढ़ने के बाद ही टूट जाते हैं और उन पुस्तकों में लिखी सभी बातो का पालन करना एक आम आदमी के लिए सम्भव भी नही होता , लेकिन इन पुस्तकों में सभी विधियां सरल हैं | पूर्व में प्रकाशित भाग 19 की तरह ही इसमें भी विभिन्न प्रकार के शाबर मन्त्रो का संग्रहं किया गया है जिससे की केवल एक ईबुक में ही आपकी समस्याओ से सम्बंधित हल व् उपाय आपके समक्ष प्रस्तुत हो सके | हमारा ध्येय आपकी समस्याओ का अंत, सुरक्षित, अन्न-धन से भरपूर व् खुशहाल जीवन व्यतीत करना है | आप फिर भी किसी भी प्रकार की समस्या के लिए हमे लिख सकते है |


जैसा की आपको ज्ञात है की अभी तक हमने शाबर मन्त्र पुस्तक के कुल 20 भाग ईबुक के रूप में प्रकाशित किये है जिनका की हमारे पाठकगण बहुत लाभ ले चुके है और समय समय पर हमे सुचना देते रहते है की उन्होंने किस मन्त्र, तन्त्र आदि का प्रयोग किया, किस विषय/कार्य के लिए किया और उन्हें कैसा परिणाम मिला और साथ ही हमारे बहुत से पाठकगण हमसे अपनी समस्याओं ईमेंल के द्वारा व् फोन कॉल के द्वारा शेयर करते है और अपनी समस्याओ के  उचित समाधान भी प्राप्त करते है |
अभी तक हम अपने पाठकों को सभी ईबूक्स अलग अलग भागो में भेजते थे जिसमे समय भी लगता था और  कई बार बहुत से भाईयो को सभी ईबुक्स ढूंढने में भी समय लगता था अत: अब हम प्रस्तुत करते है 
  शाबर मन्त्र महाशस्त्र 



जोकि केवल एक ही ईबुक है और इसी ईबुक में सभी शाबर मन्त्र के भाग 1 से 20 तक के सम्पूर्ण मन्त्र-तन्त्र-यंत्र-टोटके आदि दिए गये है | जिससे की पाठकों को बार बार अलग-अलग ईबुक्स को ढूँढना, खोजना आदि परेशानियों से भी छुटकारा मिलेगा





शाबर मन्त्र की सभी ईबुक्स भाग 1 से 20 तक का वास्तविक मूल्य : 6180/- रूपए है | और इन ईबुक्स की कीमत पाठकों के लगातार सकारात्मक सफलता को देखते हुए समय समय पर आगे बढ़ाई जाती रही है अगर आप अभी 

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