हमने इस सप्ताह को हमारी ईबुक्स खरीदने वाले सभी मित्रो को एक सर्वे फॉर्म भेजा था जिसमे से अभी केवल कुछ ही लोगो का जवाब आया है जिनको की हम आपके साथ साँझा कर रहे है ताकि आप सभी को अनुमान हो सके की हमारी ईबुक्स कैसी है और इनसे क्या फायदा लोगो को पहुंचा है |
इसके लिए एक सभी लोगो के जवाब एक साथ एक फोटो (स्क्रीनशॉट) के रूप में और अलग अलग फोटो (स्क्रीनशॉट) के रूप में आपके साथ साँझा का रहे है ताकि आप भी आंकलन कर सके |
आज तक आपने कई तन्त्र मन्त्र की पुस्तकें देखि और पढ़ी होगी लेकिन जेसा की मैं आपको EBOOK मैं मत्रों का संग्रह दे रहा हूँ वेसी आपने ना तो देखि होगी और ना ही सुनी होगी | ऐसे ऐसे मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र प्रयोग इस पुस्तक में दियें गये है जोकि कई हजारों रुपये खर्च करने पर भी सिद्ध महापुरुष / भगत लोग किसी को नही बताते | ये मन्त्र ऐसे है जोकि छोटी से छोटी साधना की पूर्ति करने व जप करने से ही मन्त्र के वीर / सिद्ध आत्मा अपना प्रभाव तुरंत ही दिखाने लगते है |
शाबर मंत्र अत्यंत ही अटपटे शब्दों की रचना होती है | जिनके बार बार आवृति से यह अत्यंत ही तीक्ष्ण प्रभावशाली बनकर तनाव चिंता से मुक्ति दिलाते ही है | साथ में मानवी इच्छा को पूर्ण करते है | इन मंत्रो के मूलभूत स्रष्टा गुरु गोरखनाथ जी है | जिन्होंने इन मंत्रो की रचना कर अध्यात्म के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया था | वस्तुतः वैदिक मन्त्र कीलित होते है जिनको की जनसाधारण द्वारा सिद्ध करना बहुत ही मुस्किल कार्य है | तथा इनको बिना गुरु के ना ही समझा जा सकता है और ना ही इन्हें सिद्ध करने का अधिकारी हो सकता है | मन्त्र उच्चारण भी बहुत कठिन होते है जिनको की बिना व्याकरण ज्ञान के ठीक ढंग से उच्चारित नहीं किया जा सकता है | तब जाकर शिव जी, गुरु गोरखनाथ, नाथ पंथी, सिद्ध साधको आदि ने लोक कल्याण के लिए इन शाबर मंत्रो का निर्माण किया जिनका कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म, जाति, उम्र, स्त्री, पुरुष कोई भी इनका प्रयोग बड़ी ही आसानी से खुद ही कर सकता है |
शाबर मंत्रो की सिद्धी के लिए वैदिक तांत्रिक मन्त्रो जैसे कड़े एंव समस्या पूर्ण विधान नहीं होते है |इनके साथ समय, स्थान, पात्र, सामग्री, जप संख्या, हवन आदि की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती | कहीं भी, कभी भी, किसी भी स्थिति में कोई भी इन शाबर मंत्रो का प्रयोग कर सकता है |
शाबर मन्त्रो की उत्पत्ति
‘साबर’ या “शबर” शब्द का पर्यायवाची अर्थ ग्रामीण, अपरिष्कृत, असभ्य आदि होता है | ‘साबर-तन्त्र’ – तन्त्र की ग्राम्य (ग्रामीण) शाखा है | इसके प्रवर्तक भगवान् शंकर स्वयं प्रत्यक्षतया नहीं है, किन्तु जिन सिद्ध-साधको ने इसका आविष्कार किया, वे जरुर परम-शिव-भक्त अवश्य थे | गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मछिन्दर नाथ ‘साबर-मन्त्र’ के जनक माने जाते हैं | तथा गोरखनाथ जी ही मुख्यतः शाबर मन्त्रो के प्रचारक माने जाते है | वे अपने तपोबल से वे भगवान् शंकर के समान पूज्य माने जाते हैं | अपनी साधना के कारण वे मन्त्र-प्रवर्तक ऋषियों के समान विश्वास और श्रद्धा के पात्र हैं | ‘सिद्ध’ और ‘नाथ’ सम्प्रदायों ने मिलकर परम्परागत मन्त्रों के मूल सिद्धान्तों को लेकर आम बोल-चाल की भाषा को अटपटे स्वरूप देकर उन शब्दों को शाबर मन्त्रो का दर्जा दिया गया |
‘साबर’-मन्त्रों में ‘दुहाई’, ‘गाली’, ‘आन’ और ‘शाप’, ‘श्रद्धा’ और ‘धमकी’ इन सबका प्रयोग किया जाता है | साधक अपने शाबर मन्त्र के देव के समक्ष ‘बालक’ या ‘याचक’ बनकर देवता को सब कुछ कहता है और उसी से सब कुछ कराना चाहता है | जिस प्रकार एक बालक अपने माता पिता से अपनी इच्छित वस्तु प्राप्त करने के लिए कुछ भी अनाप-शनाप कह देता है | और तो और आश्चर्य यह है कि उस साधक की यह ‘दुहाई’, ‘गाली’, ‘आन’ और ‘शाप’, ‘श्रद्धा’ और ‘धमकी’ भी काम करती है | ‘दुहाई’, ‘आन’ का अर्थ है – सौगन्ध, कसम देकर कार्य करवाने को बाध्य करना |
तांत्रिक व् शास्त्रीय प्रयोगों में इस प्रकार की ‘दुहाई’, ‘गाली’, ‘आन’ और ‘शाप’, ‘श्रद्धा’ और ‘धमकी’ आदि नहीं दी जाती है | ‘साबर’-मन्त्रों की रचना में हमे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, और कई क्षेत्रीय भाषाओं का समायोजन मिलता है तो कुछ मन्त्रों में संस्कृत और मलयालय, कन्नड़, गुजराती, बंगाली या तमिल भाषाओं का मिश्रित रुप मिलेगा, तो किन्हीं में शुद्ध क्षेत्रीय भाषाओं की ग्राम्य-शैली भी मिल जाती है |
हालाँकि हिन्दुस्तान में कई तरह की भाषाओ का प्रयोग व्यवहार में लाया जाता है फिर भी इसके बड़े भू-भाग में बोली जाने वाली भाषा ‘हिन्दी’ ही है | अतः अधिकांश ‘साबर’ मन्त्र हिन्दी में ही देखने-सुनने को मिलते हैं | इस मन्त्रों में शास्त्रीय मन्त्रों के समान ‘षड्न्गन्यास’ – ऋषि, छन्द, बीज, शक्ति, कीलक और देवता आदि की प्रक्रिया अलग से नहीं रहती, अपितु इन अंगों का वर्णन मन्त्र में ही सम,समाहित रहता है | इसलिए प्रत्येक ‘साबर’ मन्त्र अपने आप में पूर्ण होते है | उपदेष्टा ‘ऋषि’ के रुप में गोरखनाथ, लोना चमारिन, योगिनी, मरही माता, असावरी देवी, सुलेमान जैसे सिद्ध-पुरुष हैं | कई मन्त्रों में इनके नाम लिए जाते हैं और कईयों में केवल ‘गुरु के नाम से ही काम चल जाता है |
‘पल्लव’ (शास्त्रीय मन्त्रो के अन्त में लगाए जाने वाले शब्द आदि) के स्थान पर
‘शब्द साँचा पिण्ड काचा, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा’
वाक्य ही सामान्यतः रहता है | इस वाक्य का अर्थ है-
“शब्द (अक्षर/ध्वनि) ही सत्य है, नष्ट नहीं होती |
यह देह (शरीर) अनित्य (हमेशा न रहने वाला) है, बहुत कच्चा है |
हे मन्त्र | तुम ईश्वर की वाणी हो (ईश्वर के वचन से प्रकट होवो)”
इसी प्रकार
‘मेरी भक्ति गुरु की शक्ति
फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा’
और उपरोक्त वाक्य का अर्थ है
“मेरी भक्ति (विश्वास/ श्रद्धा) की ताकत से |
मेरे गुरु की शक्ति से |
हे मन्त्र | तुम ईश्वर की वाणी होकर चलो (ईश्वर के वचन से प्रकट होवो)”
या इससे मिलते-जुलते दूसरे शब्द आदि शाबर मन्त्रों के ‘पल्लव’ होते है |
विशेष: यहाँ हमने हमारे ईबुक्स खरीददारो की ईमेल-पता छिपाया है |
Sir unable to order e book please tell me how can I do this.
ReplyDeletePlease see the video for more information about how to download the ebooks.
Deletehttps://www.youtube.com/watch?v=tzE5imEKGA4
Guruji aapki ebook bahut achi lagi danywaad
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