Deepawali 2020 Pooja Vidhi | दीवाली पूजा का मुहूर्त 2020 | दिवाली कब है
दिवाली हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला बड़ा त्योहार है। कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन दीपावली यानी दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन लक्ष्मी पूजन का खास महत्व होता है। इस दिन सभी अपने घर में विधिवत लक्ष्मी गणेश का पूजन करते है और रात्रि के दौरान पुरे घर को दीयों से रोशन करते है। माना जाता है इस दिन देवी लक्ष्मी सभी के यहाँ भ्रमण करने आती है और जो भक्त पूरी श्रद्धा के साथ दिवाली लक्ष्मी पूजन करता है वह उसके घर सदा के लिए वास कर जाती है। बहुत से लोग इस दिन लक्ष्मी पूजन के समाप्त होने तक व्रत भी रखते है। जिसमे सुबह से लेकर शाम के लक्ष्मी पूजन तक कुछ खाया पीया नहीं जाता। इस बार इस बार मां लक्ष्मी और गणेश की पूजा 14 नवंबर (शनिवार को होगी) पूजा का शुभ मुहूर्त 17:28 से 19:24 तक रहेगा । मान्यता है कि भगवान राम चौदह साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने घर में घी के दिए जलाए थे और अमावस्या की काली रात भी रोशन हो गई थी। इसलिए दिवाली को प्रकाशोत्सव भी कहा जाता है। दिवाली के दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दीपदान, धनतेरस, गोवर्धन पूजा, भैया दूज आदि त्यौहार दिवाली के साथ-साथ ही मनाए जाते हैं।
दीवाली पूजा का मुहूर्त 2020
दीवाली के दिन लक्ष्मी का पूजा का विशेष महत्व माना गया है, इसलिए यदि इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजा की जाए तब लक्ष्मी व्यक्ति के पास ही निवास करती है. “ब्रह्मपुराण” के अनुसार आधी रात तक रहने वाली अमावस्या तिथि ही महालक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ होती है. यदि अमावस्या आधी रात तक नहीं होती है तब प्रदोष व्यापिनी तिथि लेनी चाहिए. लक्ष्मी पूजा व दीप दानादि के लिए प्रदोषकाल ही विशेष शुभ माने गए हैं.
दिवाली पर्व तिथि व मुहूर्त 2020 | दिवाली 2020 | 2020 में दिवाली कब है व दिवाली 2020 की तारीख व मुहूर्त।
दिवाली या दीपावली हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है। हिंदू धर्म में दिवाली का विशेष महत्व है। धनतेरस से भाई दूज तक करीब 5 दिनों तक चलने वाला दिवाली का त्यौहार भारत और नेपाल समेत दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है। दीपावली को दीप उत्सव भी कहा जाता है। क्योंकि दीपावली का मतलब होता है दीपों की अवली यानि पंक्ति। दिवाली का त्यौहार अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।
14 नवंबर
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त- 17:28 से 19:23
प्रदोष काल- 17:23 से 20:04
वृषभ काल- 17:28 से 19:23
अमावस्या तिथि आरंभ- 14:17 (14 नवंबर
अमावस्या तिथि समाप्त- 10:36 (15 नवंबर
दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त New Delhi, India के लिए
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त :17:30:04 से 19:25:54 तक
अवधि :1 घंटे 55 मिनट
प्रदोष काल :17:27:41 से 20:06:58 तक
वृषभ काल :17:30:04 से 19:25:54 तक
दिवाली महानिशीथ काल मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त्त :23:39:20 से 24:32:26 तक
अवधि :0 घंटे 53 मिनट
महानिशीथ काल :23:39:20 से 24:32:26 तक
सिंह काल :24:01:35 से 26:19:15 तक
दिवाली शुभ चौघड़िया मुहूर्त
अपराह्न मुहूर्त्त (लाभ, अमृत):14:20:25 से 16:07:08 तक
सायंकाल मुहूर्त्त (लाभ):17:27:41 से 19:07:14 तक
रात्रि मुहूर्त्त (शुभ, अमृत, चल):20:46:47 से 25:45:26 तक
उषाकाल मुहूर्त्त (लाभ):29:04:32 से 30:44:04 तक
दिवाली पर कब करें लक्ष्मी पूजा?
मुहूर्त का नाम महत्व
प्रदोष काल स्थिर लग्न होने से पूजा का विशेष महत्व
महानिशीथ काल तांत्रिक पूजा के लिए शुभ समय
1. देवी लक्ष्मी का पूजन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) में किया जाना चाहिए। प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न में पूजन करना सर्वोत्तम माना गया है। इस दौरान जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशि लग्न में उदित हों तब माता लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए। क्योंकि ये चारों राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। मान्यता है कि अगर स्थिर लग्न के समय पूजा की जाये तो माता लक्ष्मी अंश रूप में घर में ठहर जाती है।
2. महानिशीथ काल के दौरान भी पूजन का महत्व है लेकिन यह समय तांत्रिक, पंडित और साधकों के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है। इस काल में मां काली की पूजा का विधान है। इसके अलावा वे लोग भी इस समय में पूजन कर सकते हैं, जो महानिशिथ काल के बारे में समझ रखते हों।
लक्ष्मी पूजा, दीपावली पूजा
लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिए जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 2 घण्टे 24 मिनट तक रहता है। कुछ स्त्रोत लक्ष्मी पूजा को करने के लिए महानिशिता काल भी बताते हैं। हमारे विचार में महानिशिता काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों, जो इस विशेष समय के दौरान लक्ष्मी पूजा के बारे में अधिक जानते हैं, उनके लिए यह समय ज्यादा उपयुक्त होता है। सामान्य लोगों के लिए हम प्रदोष काल मुहूर्त उपयुक्त बताते हैं।
गृहस्थ और व्यापारी वर्ग के लोगो के लिए लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान ही किया जाना शुभ माना जाता है जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 1 घण्टे 05 मिनट तक रहता है ।
महानिशिता काल तांत्रिक समुदायों और पण्डितों के लिए होता है । महानिशीता काल में मुख्यतः तांत्रिक कार्य, ज्योतिषविद, वेद् आरम्भ, कर्मकाण्ड, अघोरी, यंत्र-मंत्र-तंत्र सिद्धि साधना कार्य व विभिन्न शक्तियों का पूजन करते हैं एवं शक्तियों का आवाहन करना, मन्त्र शक्ति जागृत करना, मंत्रो को जगाना आदि शुभ रहता है।
लक्ष्मी पूजा को करने के लिए चौघड़िया मुहूर्त विशेषकर व्यापारी समुदाय के लिए और यात्रा के लिए उपयुक्त होता है । अतः इस विशेष कल में व्यापारी वर्ग को चाहिए की धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण करें।
लक्ष्मी पूजन सामग्री
यहाँ पर बताई जा रही पूजन आदि की सामग्री की कोई बाध्यता नहीं है, आप अपने श्रद्धा और आर्थिक स्तिथि के अनुसार पूजन सामग्री का चयन कर सकते है । क्योंकि भगवान सच्ची भक्ति और भाव के भूखे है न की आप के द्वारा चढ़ाये जाने वाले पूजन सामग्री के…
लक्ष्मी व श्री गणेश की मूर्तियां बैठी हुई मुद्रा में अथवा चित्र।
रोली 10 ग्राम
मौली 2 गोला
लौंग 10 ग्राम
इलायची 10 ग्राम
साबुत सुपारी 11 पीस
इत्र 1 शीशी
देशी घी 250 ग्राम
आम के पत्ते (एक पल्लो)
खील 250 ग्राम
बताशा 250 ग्राम
सिंदूर 10 ग्राम (श्री हनुमान जी वाला )
लाल सिंदूर की डिब्बी-1
कपूर 10 ग्राम
रुई की बत्ती
माचिस
कमल गट्टा 10 ग्राम
साबुत धनिया
तोरण
साबुत चावल 1 किलो
पंच पात्र या 1 गिलास
आचमनी या एक चम्मच
अर्धा या जलपात्र कलश ढ़क्कन सहित
दीप पात्र
धूप पात्र
एक पानी वाला नारियल
लाल कपड़ा 2.5 मीटर चौकी पर बिछाने के लिये एवं नारियल पर लपेटने के लिये
केसर 2 ग्राम
कुशासन या लाल कम्बल -आसन के लिये
सफेद कपड़ा
सफेद चंदन
लाल चंदन
मिट्टी के 5, 11, 21 या अधिक छोटे दीपक
मिट्टी का एक बडा दीपक
पान के 11 पत्ते डंडी सहित
ऋतु फल
पंचमेवा
दूब या दुर्बा
फूल
फूल माला
गणेश जी के लिये लड्डू
मिठाई
सरसो का तेल
साबुत हल्दी 20 ग्राम
कुमकुम या गुलाल 10 ग्राम
कलम
स्याही की दवात
बही खाता
तिज़ोरी या गुल्लक
एक थाली आरती के लिये
कटोरी दूध दही पंचामृत के लिये
पंचामृत - दूध,दही, शहद,घी ,शक्कर (चीनी) मिलाकर बनाये
धूप का एक पैकेट
पिसी हल्दी
कमल का फूल
आभूषण वस्त्र
गंगाजल
घंटी
गुड़ 100 ग्राम
चांदी का सिक्का
2 थाली या चौकी
दिवाली पर लक्ष्मी पूजा की विधि
दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का विशेष विधान है। इस दिन संध्या और रात्रि के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, विघ्नहर्ता भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा और आराधना की जाती है। पुराणों के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक पर आती हैं और हर घर में विचरण करती हैं। इस दौरान जो घर हर प्रकार से स्वच्छ और प्रकाशवान हो, वहां वे अंश रूप में ठहर जाती हैं इसलिए दिवाली पर साफ-सफाई करके विधि विधान से पूजन करने से माता महालक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ कुबेर पूजा भी की जाती है। पूजन के दौरान इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
1. दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन से पहले घर की साफ-सफाई करें और पूरे घर में वातावरण की शुद्धि और पवित्रता के लिए गंगाजल का छिड़काव करें। साथ ही घर के द्वार पर रंगोली और दीयों की एक शृंखला बनाएं।
2. पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या दीवार पर लक्ष्मी जी का चित्र लगाएं। चौकी के पास जल से भरा एक कलश रखें।
3. माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति पर तिलक लगाएं और दीपक जलाकर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, हल्दी, अबीर-गुलाल आदि अर्पित करें और माता महालक्ष्मी की स्तुति करें।
4. इसके साथ देवी सरस्वती, मां काली, भगवान विष्णु और कुबेर देव की भी विधि विधान से पूजा करें।
5. महालक्ष्मी पूजन पूरे परिवार को एकत्रित होकर करना चाहिए।
6. महालक्ष्मी पूजन के बाद तिजोरी, बहीखाते और व्यापारिक उपकरण की पूजा करें।
7. पूजन के बाद श्रद्धा अनुसार ज़रुरतमंद लोगों को मिठाई और दक्षिणा दें।
पूजा प्रारम्भ करने से पहले जलपत्र एवं कलश मे गंगा जल मिला लें ।
• ताम्बूल बनाने के लिये पान के पत्ते को उल्टा करके उस पर लौंग इलायची सुपारी एवं कुछ मीठा रखें ।
• दुर्वा में तीनपत्ती होनी चहिये ।
• गणपति पर तुलसी दल ना चढ़ायें ।
• श्री लक्ष्मी जी को कमल का फूल बहुत प्रिय है ।
• जमीन पर गिरा हुआ ,बासी ,कीड़ा खाया हुआ फूल न चढ़ायें ।
• टूटी फूटी मुर्तियों को नदी मे, मंदिर में या पीपल के नीचे विसर्जित करे ।
• लक्ष्मी प्राप्ति के लिये लक्ष्मी मंत्र कमलगट्टे की माला पर जपना अधिक उत्तम होता है।
• धन प्राप्ति के लिये लाल आसन उत्तम रह्ता है ।
• ध्यान रहे कि पूजा करते समय या मंत्र उच्चारण के समय हाथ कभी भी खाली ना रहे । हाथ मे फूल या चावल अवश्य रखें ।
• घी का दीपक भगवान की मूर्ति के दाई ओर एवं तेल का दीपक बाई ओर रखे। धूप जल पात्र बाई ओर ही स्थापित करें।
• रक्षा सूत्र (मौली) बांधते समय हाथ मे पैसा एवं अक्षत ले खाली हाथ रक्षा सूत्र ना बांधे ।
• यदि पूजा करते समय कोइ भी चीज़ कम पड़ जाये तो आप उसकी जगह साबुत लाल चावल चढ़ा सकते है ।
•दीपावली पूजन के पश्चात सभी सामग्री देवि एवं देवताओ की स्थापना को सारी रात यथा स्थान रहने दे। विसर्जन अगले दिन करे । ध्यान रहे कि गणेश लक्ष्मी जी की मूर्ति को विसर्जन नहीं करना है, एक वर्ष रखना होता है अगले वर्ष नई मूर्तियो के पूजन के बाद ही पुराने वर्ष की मूर्ति को विसर्जन करना चहिये ।
•चढ़ाई हुइ दक्षिणा किसी ब्राह्मण को दे या मंदिर में दान करे ।
दीपक कहाँ रखने चाहिए
वैसे तो अपनी श्रद्धा के अनुसार दीपक जलाकर रखे जा सकते है लेकिन कुछ जगह दीपक जलाकर अवश्य रखने चाहिए ,जो इस प्रकार है :— घी का दीपक इष्ट देव के यहाँ जहाँ रोज पूजा करते है।
— एक दीपक तुलसी के तले।
— घर के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ एक एक ।
— एक दीपक घर के दक्षिणी पश्चिमी कोने पर।
— एक दीपक रसोई घर में।
— एक दीपक मटकी वाले परिन्डे पर(जल के जल/पानी स्रोतों पर)
— एक दीपक पास में यदि कोई मंदिर है तो वहाँ।
— एक दीपक पीपल के पेड़ के नीचे।
हम आशा करते हैं कि दिवाली का त्यौहार आपके लिए मंगलमय हो। माता लक्ष्मी की कृपा आप पर सदैव बनी रहे और आपके जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली आए।
सबसे पहले पूजा स्थल की साफ सफाई कर ले । इसके बाद अपने आपको तथा आसन को, पूजन सामग्रियों को इस मंत्र से शुद्धिकरण के लिए इस मंत्र का जाप करे –
“ऊं अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥”
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दःकूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें –पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ केशवाय नमः
और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ नारायणाय नमः
फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नमः
फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें-
ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
शुद्धि और आचमन के बाद चौकी सजाये चौकी पर माँ लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियाँ विराजमान करे ।
मूर्तियों को विराजमान करने से पहले यह सुनश्चित अवश्य कर ले की मूर्तियों का मुख पूर्व या पश्चिम दिशा में हो और भगवान गणेश की मूर्ति माँ लक्ष्मी की बायीं ओर ही हो पूजनकर्ता का मुख मूर्तियों के सामने की तरफ हो।
अब कलश को माँ लक्ष्मी के सामने मुट्ठी भर चावलो के ऊपर स्थापित कर दे कलश के मुख पर रक्षा सूत्र बांध ले और चारो तरफ कलश पर रोली से स्वस्तिक या ॐ बना ले।
कलश के अंदर साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल, सिक्का डालें ।
उसके ऊपर आम या अशोक के पत्ते रखने चाहिए उसके ऊपर नारियल, जिस पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें।
अब नारियल को कलश पर रखें।
ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर हो, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।
कलश वरुण का प्रतीक है ।
इस प्रक्रिया के बाद गणेशजी की ओर त्रिशूल और माँ लक्ष्मीजी की ओर श्री का चिह्न बनाएँ उसके सामने चावल का ढेर लगाकर नौ ढेरियाँ बनाएँ ।
छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें ।
दो दिप को जलाये – एक घी की दीपक और दूसरें को तेल से भर कर और एक दीपक को चौकी के दाईं ओर और दूसरें को लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाओं के चरणों में रखें।
तीन थालियों में निम्न सामान रखें।
1. ग्यारह दीपक (पहली थाली में)
2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप सिन्दूर कुंकुम, सुपारी, पान (दूसरी थाली में)
3. फूल, दुर्वा चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक. (तीसरी थाली में)
इन थालियों के सामने पूजा करने वाला स्वंय बैठे। परिवार के अन्य सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। शेष सभी परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
आप हाथ में अक्षत, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ द्रव्य (रुपये, पैसे 1, 2, 5, 11 आदि) भी ले लीजिए यह सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र का जाप करे ।
ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे,अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : २०७५, तमेऽब्दे शोभन नाम संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ (जो वार हो) शुक्र वासरे स्वाति नक्षत्रे प्रीति योग नाग करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।
अर्थात संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो।
सबसे पहले गणेश जी पूजन करे तब माँ लक्ष्मी का।
दिवाली गणपति पूजन विधि
हाथ में पुष्प और चावल का अक्षत लेकर गणपति का ध्यान करें।
मंत्र पढ़ें-
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
आवाहन: ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।।
इतना कहकर पात्र में अक्षत छोड़ें।
अर्घा में जल लेकर बोलें-
एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:।
रक्त चंदन लगाएं –
इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:
सिन्दूर चढ़ाएं –
इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:
दुर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं।
गणेश जी को वस्त्र पहनाएं –
इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।
पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें-
इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:।
इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें। जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें।
दिवाली लक्ष्मी पूजन विधि
सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करे-ं
ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।
इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा (स्थापित) करें। हाथ में अक्षत लेकर बोले-
“ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”
-प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं :
ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।।
ॐ लक्ष्म्यै नमः।।
रक्त चंदन लगाए-
इदं रक्त चंदनम् लेपनम् ।
इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं।
‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः।
पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।।
ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’
इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं।
अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं।
लक्ष्मी देवी की पूजा के बाद भगवान विष्णु एवं शिव जी पूजा करनी चाहिए फिर गल्ले की पूजा करें।
लक्ष्मी पूजा के समय लक्ष्मी मंत्र का उच्चारण करते रहें –
इस मंत्र का कम से कम 11 माला कमलगट्टे की माला से जप करें और अधिक आपके सामर्थ्यानुसार 51, 108, 11, 121 माला जपें
मन्त्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:
पूजन के पश्चात सपरिवार आरती और क्षमा प्रार्थना करें-
क्षमा प्रार्थना
न मंत्रं नोयंत्रं तदपिच नजाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपिच नजाने स्तुतिकथाः ।
नजाने मुद्रास्ते तदपिच नजाने विलपनं
परं जाने मातस्त्व दनुसरणं क्लेशहरणं
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्याच्युतिरभूत् ।
तदेतत् क्षंतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः संति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुतः ।
मदीयो7यंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति
परित्यक्तादेवा विविध सेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि
इदानींचेन्मातः तव यदि कृपा
नापि भविता निरालंबो लंबोदर जननि कं यामि शरणं
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ
चिताभस्म लेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कंठे भुजगपतहारी पशुपतिः
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदं
न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः
अतस्त्वां सुयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाधे
धत्से कृपामुचितमंब परं तवैव
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि
नैतच्छदत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरंति
जगदंब विचित्रमत्र किं
परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि
अपराधपरंपरावृतं नहि माता
समुपेक्षते सुतं
मत्समः पातकी नास्ति
पापघ्नी त्वत्समा नहि
एवं ज्ञात्वा महादेवि
यथायोग्यं तथा कुरु
आरती श्री लक्ष्मी जी की
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु धाता | ॐ | | |
उमा, रमा, ब्राह्माणी, तुम ही जग-माता
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता | ॐ | | |
दुर्गा रुप निरन्जनी, सुख सम्पत्ति दाता |
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता | ॐ…
तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता | ॐ | | |
जिस घर में तुम रहती, सब सद गुण आता
सब सम्भव हो जाता, मन नही घबराता | ॐ | | |
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता |
खान - पान का वैभव, सब तुमसे आता | ॐ | | |
शुभ - गुण मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि जाता
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नही पाता | ॐ | | |
महालक्ष्मी जी की आरती | जो कोई जन गाता |
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता | ॐ | | |
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु धाता | ॐ | | |
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