हनुमान चालीसा से आज के युग में कौन अनजान है |
कोऊ नही जानत है जग में प्रभु |
संकट मोचन नाम तिहारो ||
वस्तुतः हनुमान चालीसा एक विलक्षण साधना क्रम है जिसमे कई सिद्धो की शक्ति कार्य करती है, विविध साबर मंत्रो के समूह सम यह चालीसा अनंत शक्तियों से सम्प्पन है |
भारतीय आगम तथा निगम में स्तोत्र का एक महत्वपूर्ण स्थान है | सामान्य रूप से स्तोत्र की व्याख्या कुछ इस प्रकार की जा सकती है की स्तोत्र विशेष शब्दों का समूह है जिसके माध्यम से इष्ट की अभ्यर्थना की जाती है | वस्तुतः स्तोत्र के भी कई कई प्रकार है लेकिन तंत्र में इन स्तोत्र को सहजता से नहीं लिया जा सकता है, तंत्र वह क्षेत्र है जहां पर पग पग पर अनन्त रहस्य बिखरे पड़े है | चाहे वह शिवतांडव स्तोत्र हो या सिद्ध कुंजिका, सभी अपने आप में कई कई गोपनीय प्रक्रिया तथा साधनाओ को अपने आप में समाहित किये हुवे है | कई स्तोत्र, कवच, सहस्त्रनाम, खडगमाल आदि शिव या शक्ति के श्रीमुख से उच्चारित हुए है जो की स्वयं सिद्ध है और यही स्तोत्र विभिन्न तंत्र के भाग है | इसके अलावा कई महासिद्धो ने भी अपने इष्ट की साधना कर उनको प्रत्यक्ष किया था तथा तदोपरांत स्तोत्र की रचना कर उन स्तोत्र की जनमानस के कल्याण सिद्धि हेतु अपने इष्ट से वरदान प्राप्त किया था | ऐसे स्तोत्र निश्चय ही सर्व सिद्धि प्रदाता होते है | खेर, देखा देखि में आज के युग में हर देवी देवता से सबंधित चालीसा प्राप्त हो जाती है लेकिन तंत्र की दृष्टि से देखे तो वह मात्र काव्य से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है क्यों की न ही उसमे कोई स्वयं चेतना है और ना ही इष्ट की शक्ति | इसके अलावा उसमे कोई महासिद्ध का कोई प्रभाव आदि भी नहीं है | एसी चालीसा और दूसरे काव्यों में कोई अन्तर नहीं है उसका पठन करने पर साधक को क्या और कैसे कोई उपलब्धि हो सकती है इसका निर्णय साधक खुद ही कर सकता है | निश्चय ही आदी चालीसा अर्थात हनुमान चालीसा के अलावा कोई भी चालीसा का पठन सिद्धि प्रदान करने में असमर्थ है |
अगर सूक्ष्म रूप से अध्ययन किया जाए तो हनुमान जी के मूल शिव स्वरुप के आदिनाथ स्वरुप की ही साबर अभ्यर्थना है, कानन कुंडल, संकर सुवन, तुम्हारो मन्त्र, आपन तेज, गुरुदेव की नाइ, अष्ट सिद्धि आदि विविध शब्द के बारे में साधक खुद ही अध्ययन कर विविध पदों के गूढार्थ समझने की कोशिश करे तो कई प्रकार के रहस्य साधक के सामने उजागर हो सकते है |
जो सत् बार पाठ करे कोई |
छूटही बंदी महासुख होई ||
जो हनुमान चालीसा का 108 ( 100 + 8 हवन के =108 ) बार पाठ कर लेता है तो बंधन से मुक्त होता है तथा महासुख को प्राप्त होता है | लेकिन यह सहज ही संभव नहीं होता है, भौतिक अर्थ इसका भले ही कुछ और हो लेकिन आध्यात्मिक रूप से यहाँ पर बंधन का अर्थ आतंरिक तथा शारीरिक दोनों बंधन से है | तथा महासुख अर्थात शांत चित की प्राप्ति होना है | लेकिन कोई भी स्थिति की प्राप्ति के लिए साधक को एक निश्चित प्रक्रिया को करना अनिवार्य है क्योंकी एक निश्चित प्रक्रिया ही एक निश्चित परिणाम की प्राप्ति को संभव बना सकती है |
|| श्रीहनुमान चालीसा ||
|| सियावर राम जय जय राम
मेरे प्रभु राम जय जय राम
बजरंग ध्यान
श्रीराम
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं |
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम् | |
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं |
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि | |
अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं |
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम् | |
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं |
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि | |
दोहा
श्रीगुरु चरण सरोज रज,
श्रीगुरु चरण सरोज रज,
निज मनु मुकुर सुधारि
बरनउ रघुवर बिमल जसु,
बरनउ रघुवर बिमल जसु,
जो दायकु फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानिके,
बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि,
बल बुधि विद्या देहु मोहि,
हरहु कलेश विकार
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥2॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा॥4॥
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥2॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा॥4॥
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥5॥
शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन॥6॥
विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर॥7॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया॥8॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
विकट रूप धरि लंक जरावा॥9॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे॥10॥
लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥11॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥12॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥13॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा॥14॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥15॥
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥16॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना॥17॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥18॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥19॥
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥
राम दुआरे तुम रखवारे
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥21॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहु को डरना॥22॥
आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तै कापै॥23॥
भूत पिशाच निकट नहि आवै
महावीर जब नाम सुनावै॥24॥
नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥25॥
संकट तै हनुमान छुडावै
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥26॥
सब पर राम तपस्वी राजा
तिनके काज सकल तुम साजा॥27॥
और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥
चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥
साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता॥31॥
राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥
तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥
अंतकाल रघुवर पुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥34॥
और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥
संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥
जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई॥38॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा
होय सिद्ध साखी गौरीसा॥39॥
छूटहि बंदि महा सुख होई॥38॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा
होय सिद्ध साखी गौरीसा॥39॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥40॥
दोहा
पवन तनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित,
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप॥
|| सियावर राम चन्द्र की जय
उमापति शिवशंकर की जय
पवनसुत हनुमान की जय
महावीर बजरंगी की जय
अंजनी के लाल की जय
बोलो रे भाई सब संतो की जय
सियावर राम जय जय राम
मेरे प्रभु राम जय जय राम
सियावर राम जय जय राम
मेरे प्रभु राम जय जय राम
सियावर राम जय जय राम
मेरे प्रभु राम जय जय राम ||
हनुमान चालीसा का यह प्रयोग सकाम प्रयोग तथा निष्काम प्रकार दोनों रूप में होता है | इसलिए साधक को अनुष्ठान करने से पूर्व अपनी कामना का संकल्प लेना आवश्यक है | अगर कोई विशेष इच्छा के लिए प्रयोग किया जा रहा हो तो साधक को संकल्प लेना चाहिए की –
“मैं अमुक नाम का साधक यह प्रयोग ____कार्य के लिए कर रहा हू, भगवान हनुमान मुझे इस हेतु सफलता के लिए शक्ति तथा आशीर्वाद प्रदान करे |”
अगर साधक निष्काम भाव से यह प्रयोग कर रहा है तो संकल्प लेना आवश्यक नहीं है |
साधक अगर सकाम रूप से साधना कर रहा है तो साधक को अपने सामने भगवान हनुमान का वीर भाव से युक्त चित्र स्थापित करना चाहिए | अर्थात जिसमे वह पहाड़ को उठा कर ले जा रहे हो या असुरों का नाश कर रहे हो |
लेकिन अगर निष्काम साधना करनी हो तो साधक को अपने सामने दास भाव युक्त हनुमान का चित्र स्थापित करना चाहिए अर्थात जिसमे वह ध्यान मग्न हो या फिर श्रीराम के चरणों में बैठे हुवे हो |
साधक को यह क्रिया एकांत में करना चाहिए, अगर साधक अपने कमरे में यह क्रिया कर रहा हो तो जाप के समय उसके साथ कोई और दूसरा व्यक्ति नहीं होना चाहिए | और मेरी सलाह यहीं है की इसका प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखा जाय कि घर में महिला आदि गंदी अवस्था में ना हो | और उचित होगा की किसी एकांत कमरे या निर्जन स्थान, मन्दिर आदि का आश्रय लेकर साधना की जाय |
स्त्री साधिका हनुमान चालीसा या साधना नहीं कर सकती यह मात्र मिथ्या धारणा है | कोई भी साधिका हनुमान साधना या प्रयोग सम्प्पन कर सकती है | रजस्वला समय में यह प्रयोग या अन्य कोई भी साधना नहीं की जा सकती है | साधक साधिकाओ को यह प्रयोग करने से एक दिन पूर्व, प्रयोग के दिन तथा प्रयोग के दूसरे दिन अर्थात कुल 3 दिन ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए |
Þ सकाम उपासना में वस्त्र लाल रहे निष्काम में भगवे रंग के वस्त्रों का प्रयोग होता है | यदि सम्भव न हो सके तो केवल लाल वस्त्र का ही दोनों कर्मो में प्रयोग करे |
Þ दोनों ही कार्य में दिशा उत्तर रहे |
Þ साधक को भोग में गुड़ तथा उबले हुए चने, एक रोट जोकि साधक ने स्वयं बनायीं हो, अर्पित करने चाहिए |
Þ कोई भी फल अर्पित किया जा सकता है | खासकर के केले व जंगली फल |
Þ साधक दीपक तेल या गाय के घी का लगा सकता है |
Þ साधक को आक के पुष्प या लाल रंग के पुष्प समर्पित करने चाहिए | गुलाब आदि खुशबूदार फुल का प्रयोग ना करे |
Þ यह प्रयोग साधक किसी भी मंगलवार की रात्रि को करे तथा समय रात्रि 10 बजे के बाद का चयन करे |
Þ सर्व प्रथम साधक स्नान आदि से निवृत हो कर वस्त्र धारण कर के लाल आसान पर बैठ जाये |
Þ साधक अपने पास ही आक के 108 पुष्प रख ले |
Þ अगर किसी भी तरह से यह संभव न हो तो साधक कोई भी लाल रंग के 108 पुष्प अपने पास रख ले |
Þ अपने सामने किसी बाजोट पर या पूजा स्थान में लाल वस्त्र बिछा कर उस पर हनुमानजी का चित्र या यन्त्र या विग्रह को स्थापित करे |
Þ फिर उनके सामने तेल या घी का दीपक जलाये |
Þ साधक गुरु पूजन गुरु मंत्र का जाप करके गणपति जी से कार्य सिद्धि हेतु प्रार्थना करे और श्री राम जी का, सीता जी का, और कार्य सिद्धि हेतु प्रार्थना करे हनुमान जी का आह्वान करे तथा उनका सामान्य पूजन करे |
Þ इस क्रिया के बाद साधक ‘हं’ बीज का उच्चारण कुछ देर करे तथा उसके बाद अनुलोम विलोम प्राणायाम करे |
Þ प्राणायाम के बाद साधक हाथ में जल ले कर संकल्प करे तथा अपनी मनोकामना बोले |
Þ “मैं अमुक नाम का साधक यह प्रयोग ____कार्य के लिए कर रहा हू, भगवान हनुमान मुझे इस हेतु सफलता के लिए शक्ति तथा आशीर्वाद प्रदान करे |”
Þ इसके बाद साधक राम रक्षा स्तोत्र या ‘रां रामाय नमः’ का यथा संभव जाप करे |
Þ साधक को उसी रात्रि में 108 बार पाठ करना है |
Þ हर एक बार पाठ पूर्ण होने पर एक पुष्प हनुमानजी के यंत्र/चित्र/विग्रह को समर्पित करे | इस प्रकार 108 बार पाठ करने पर 108 पुष्प समर्पित करने चाहिए | 108 पाठ पुरे होने पर साधक वापस ‘हं’ बीज का थोड़ी देर उच्चारण करे तथा जाप को हनुमानजी के चरणों में समर्पित कर दे |
इस प्रकार यह प्रयोग पूर्ण होता है | साधक दूसरे दिन पुष्प का विसर्जन कर दे |
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